Clinic Mein Garam Chudai

Clinic Mein Garam Chudai

मेरा नाम कुणाल है, और मैं जयपुर का रहने वाला हूँ। पेशे से मैं डॉक्टर हूँ। ये बात उस वक्त की है जब मैंने अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी की और एक सीनियर डॉक्टर के क्लिनिक में काम शुरू किया। क्लिनिक का माहौल नया था, लेकिन वहाँ एक ऐसी लड़की थी जो मेरे होश उड़ा देती थी। उसका नाम था मालविका। वो एक ऐसी हसीना थी कि उसका जिस्म देखकर किसी का भी लंड तन जाए। उसका फिगर 34-30-36 का होगा, मम्मे इतने सख्त और नुकीले कि जैसे किसी ने नाप-तौल कर बनाए हों। जब वो चलती थी, तो उसकी गांड का हर हिलना किसी को भी दीवाना बना देता था। उसकी खूबसूरती और छरहरा बदन मेरे दिलो-दिमाग पर छा गया था। मैं रात को अकेले में उसकी सोचकर मुठ मारता था और मन ही मन उसे न जाने कितनी बार चोद चुका था।

उन दिनों मैं कॉलेज से निकला ही था। जवानी का जोश ऐसा था कि हर लड़की को देखकर बस उसे बिस्तर पर लिटाने की सोचता था। मालविका तो जैसे मेरे लिए बनी थी। उसकी आँखों में एक शरारत थी, और उसकी हर अदा मुझे बेकरार कर देती थी। लेकिन किस्मत ने मेरे लिए कुछ और ही सोचा था। एक दिन मेरा सीनियर डॉक्टर किसी मरीज को देखने बाहर गया था। उसने मुझे क्लिनिक जल्दी पहुँचने को कहा। मैं सुबह-सुबह क्लिनिक पहुँच गया, लेकिन मालविका नहीं आई। मैं उसका इंतजार करने लगा। बाहर बारिश शुरू हो चुकी थी, आसमान में काले बादल छा गए थे। मैंने सोचा कि शायद वो बारिश की वजह से लेट हो गई। मैंने क्लिनिक के रजिस्टर से उसका नंबर निकाला और फोन किया। उसने बताया कि वो रास्ते में कहीं फंस गई है और बारिश रुकने के बाद थोड़ी देर में आएगी।

मैं इंतजार करता रहा। कुछ देर बाद दरवाजा खुला और मालविका अंदर आई। वो पूरी तरह भीग चुकी थी। उसने नीले रंग का सूट पहना था, जो पानी से तरबतर था। उसका सूट उसके जिस्म से चिपक गया था, और उसकी हर एक आउटलाइन साफ दिख रही थी। वो ठंड से काँप रही थी और अपने हाथों से अपनी इज्जत छुपाने की कोशिश कर रही थी। उसकी काली ब्रा गीले सूट के नीचे से साफ दिख रही थी। मेरी नजर उसके मम्मों पर अटक गई। वो इतने भरे और सख्त थे कि मेरा लंड पैंट में तन गया।

वो अंदर की तरफ जाने लगी, लेकिन मैंने उसे रोक लिया। “मालविका, रुको ना,” मैंने हल्के से कहा। वो रुक गई, पलटी और मेरी तरफ देखने लगी। उसकी आँखों में शर्म थी, लेकिन कुछ और भी था—शायद एक चाहत। मैंने दूर से ही उसे फ्लाइंग किस दी। वो शरमा गई और जल्दी से बाथरूम की तरफ चली गई। मुझे डर हुआ कि कहीं वो बुरा न मान जाए। मैं उसके पीछे गया। वो बाथरूम में कपड़े बदलने लगी थी। मैंने चाबी के छेद से झाँका। उसने अपने गीले कपड़े उतारे और तौलिये से अपने जिस्म को पोंछने लगी। वो शीशे के सामने खड़ी थी, और अपने मम्मों को छूकर देख रही थी, जैसे खुद से खेलने का मन हो।

मेरे लंड में करंट सा दौड़ गया। मैं खुद को रोक नहीं पाया और बाहर आ गया। मैंने क्लिनिक का दरवाजा अंदर से बंद कर दिया और उसका इंतजार करने लगा। पाँच मिनट बाद वो बाहर आई। उसने नया कुर्ता और सलवार पहनी थी, लेकिन उसके बाल अभी भी गीले थे। पानी की बूँदें उसके चेहरे पर गिर रही थीं, जिससे वो और भी सेक्सी लग रही थी। उसने देखा कि क्लिनिक बंद है। “ये क्यों बंद किया?” उसने पूछा, उसकी आवाज में हल्की घबराहट थी।

“आज काम का मूड नहीं है,” मैंने हल्के से हँसते हुए कहा। वो मेरे सामने बैठ गई। मैंने देखा कि वो अभी भी ठंड से काँप रही थी। मैंने बाहर की ठेले से दो चाय मंगवा ली। चाय पीते वक्त मैं बस उसे ही देख रहा था। उसने मेरी नजर पकड़ ली और समझ गई कि मैं उसके मम्मों को घूर रहा हूँ। वो शरमा रही थी, लेकिन उसकी आँखों में एक चाहत थी।

हम चुपचाप चाय पी रहे थे। तभी अचानक उसका हाथ काँपने लगा, और चाय का गिलास हिलने लगा। मैंने जल्दी से गिलास पकड़ लिया ताकि गिर न जाए। जैसे ही मैंने उसका हाथ छुआ, उसने मेरी तरफ देखा। उसकी आँखों में एक आग थी। उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और बस मुझे देखने लगी। मैं समझ नहीं पाया कि ये क्या हो रहा है। तभी वो मेज के इस पार आई और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए। मैं स्तब्ध रह गया। उसका जिस्म मुझसे चिपक गया था, जैसे कोई नागिन लिपट रही हो।

मैंने भी उसका साथ देना शुरू किया। मैं उसके होंठों को चूसने लगा, मेरे हाथ उसकी पीठ पर फिसलने लगे। उसने मेरी शर्ट के बटन खोलने शुरू किए। मेरा लंड पूरी तरह तन चुका था। मैंने उसके कुर्ते के ऊपर से ही उसके मम्मों को दबाना शुरू किया। वो सख्त और भरे हुए थे, दबाने में इतना मजा आ रहा था कि मैं रुक ही नहीं पा रहा था। वो सिसकारियाँ ले रही थी— “आह… ओह… कुणाल… और जोर से…” उसकी आवाज में वासना थी। मैंने उसका कुर्ता उतार दिया। उसने ब्रा नहीं पहनी थी, शायद बारिश की वजह से। उसके मम्मे दूध जैसे चमक रहे थे। मैंने उन्हें चूसना शुरू किया। मेरी जीभ उसके निप्पलों पर घूम रही थी, और वो मेरे सिर को अपने मम्मों पर दबा रही थी। “चूसो… और जोर से चूसो… आह… ओह…” वो बार-बार कह रही थी।

मैंने एक उंगली उसके मुँह में डाल दी, और वो उसे लंड की तरह चूसने लगी। उसकी सिसकारियाँ और तेज हो गईं— “ई… ई… आह… ओह…” मैंने उसकी सलवार का नाड़ा खोला और उसे नीचे सरका दिया। उसने पैंटी भी नहीं पहनी थी। मेरी उंगलियाँ उसकी चूत पर फिसलीं। वो पूरी तरह गीली थी, चिकनी और बिना बालों की। मैंने उसकी चूत में उंगली डाल दी। वो जोर से चिल्लाई— “आह… ओह… कुणाल… धीरे…” लेकिन उसकी आवाज में दर्द के साथ-साथ मजा भी था। मैंने उसकी चूत को चाटना शुरू किया, और वो मेरे लंड को अपने मुँह में लेने लगी। हम 69 की पोजीशन में आ गए। उसकी चूत का स्वाद मुझे पागल कर रहा था। वो मेरे लंड को चूस रही थी, जैसे कोई कुल्फी चाट रहा हो। “आह… कुणाल… तेरा लंड… इतना बड़ा…” वो बीच-बीच में कह रही थी।

कुछ देर बाद वो जोर-जोर से हिलने लगी और उसने मेरे मुँह पर पानी छोड़ दिया। मैंने उसकी चूत चाटना जारी रखा। वो फिर से गर्म होने लगी। “कुणाल… अब और नहीं… मेरी चूत में डाल दे… प्लीज… अब चोद दे मुझे…” उसकी आवाज में तड़प थी। मैंने उसे मेज पर लिटाया, उसके पैर अपने कंधों पर रखे। मैंने थूक निकाला और उसकी चूत पर लगाया। मेरा 7 इंच का लंड उसके छेद पर टिका। उसकी चूत टाइट थी, जैसे सील बंद। मैंने धीरे से लंड का टोपा अंदर डाला। वो चिल्लाई— “आह… निकाल… दर्द हो रहा है…” लेकिन मैंने उसकी कमर पकड़ी और धीरे-धीरे और अंदर डाला। “ओह… कुणाल… धीरे… आह…” वो चिल्ला रही थी। मैंने एक जोरदार धक्का मारा, और मेरा पूरा लंड उसकी चूत में समा गया। उसकी आँखों में आँसू आ गए। “आह… ई… ओह… कुणाल… दर्द…” वो सिसकार रही थी।

मैं रुका, ताकि उसका दर्द कम हो। फिर धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू किए। “थप… थप… थप…” लंड उसकी चूत में अंदर-बाहर हो रहा था। वो अब दर्द के साथ मजा भी ले रही थी। “आह… और जोर से… चोद मुझे… आह… ओह…” वो चिल्ला रही थी। मैंने स्पीड बढ़ा दी। उसकी चूत इतनी टाइट थी कि मेरा लंड हर धक्के में और ताव खा रहा था। “आह… कुणाल… फाड़ दे मेरी चूत… ओह…” वो जोर-जोर से चिल्ला रही थी। मैंने और जोर से धक्के मारे, और कुछ ही देर में मैं उसकी चूत में झड़ गया।

उसकी चूत से खून बह रहा था। वो दर्द से कराह रही थी। मैंने उसे बाथरूम में ले जाकर साफ किया। वो मुझसे नजर नहीं मिला पा रही थी। जब बाहर मौसम ठीक हुआ, वो चुपचाप चली गई। मैं अगले मौके का इंतजार करने लगा।

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