मेरा नाम गीता है, उम्र 24 साल। मेरी शादी को चार साल हो चुके हैं, लेकिन इन चार सालों में न तो मुझे माँ बनने की खुशी मिली, न ही वो सुख जो एक औरत अपने पति के बिस्तर पर पाना चाहती है। मेरे पति, रमेश, एक हादसे की वजह से अपनी मर्दानगी खो चुके हैं। उनका लंड खड़ा नहीं होता। वो सिर्फ मेरी चूत में उंगलियाँ डालते हैं, मेरे 36 इंच के बूब्स को दबाते हैं, निप्पल्स चूसते हैं, और होंठों को चूमते हैं। लेकिन दोस्तों, सोचो, जिस चूत में मोटा, तगड़ा लंड न जाए, सिर्फ पतली उंगलियाँ ही घुसें, क्या उसकी प्यास कभी बुझ सकती है? नहीं, चुदाई के लिए तो बस एक कड़क लौड़ा चाहिए, और कुछ नहीं।
हर रात रमेश मेरी वासना को भड़काते हैं। मेरी चूत गीली हो जाती है, मेरा जिस्म तड़पता है, लेकिन वो बस इतना करके चैन से सो जाते हैं। मैं कितने दिन तक ये सब सहन करूँ? कब तक पतिव्रता बनकर अपनी आग को दबाऊँ? आखिरकार, वो दिन आया—करवा चौथ का दिन। उस दिन मेरी तड़प इतनी बढ़ गई कि मैं अपनी वासना की आंधी में बहकर अपने नंदोई, संजय, के कमरे तक चली गई। उस रात मुझे पहली बार पता चला कि असली चुदाई क्या होती है, और मर्द का लंड क्या कर सकता है।
करवा चौथ का दिन था। सुबह से मैंने व्रत रखा था। मैंने लाल साड़ी पहनी, कसी हुई चोली जो मेरे बूब्स को और उभार रही थी। मेरे गुलाबी होंठ, काजल से सजे नैन, और लंबे खुले बाल मेरे कंधों पर लहरा रहे थे। मेरा गोरा जिस्म ऐसा लग रहा था, मानो कोई अप्सरा हो। शाम को चाँद देखकर मैंने जल लिया, फिर खाना खाया। लेकिन मेरे मन में एक अजीब सी बेचैनी थी। मुझे पता था कि रात को फिर वही होगा—रमेश मुझे तड़पाकर छोड़ देंगे।
खाना खाने के बाद हम अपने कमरे में गए। मैं अभी भी साड़ी में थी। रमेश ने मुझे बाहों में लिया और छेड़ना शुरू किया। उनकी उंगलियाँ मेरे ब्लाउज के हुक खोलने लगीं। धीरे-धीरे मेरी साड़ी, पेटीकोट, और ब्लाउज उतर गए। मैं लाल ब्रा और पैंटी में थी। रमेश ने मेरे बाल खोल दिए, और मैं बिस्तर पर किसी हूर की तरह लेटी थी। वो मेरे बूब्स को ब्रा के ऊपर से दबाने लगे, मेरे निप्पल्स को चूमा। “आह्ह… रमेश… धीरे…” मेरी साँसें तेज हो गईं। लेकिन फिर वही हुआ—उन्होंने मेरी पैंटी में उंगली डाली और मेरी चूत में सटासट चलाने लगे।
मेरी चूत गीली हो चुकी थी। मेरे निप्पल्स तन गए थे। “आआह्ह… उह्ह…” मेरी सिसकियाँ निकल रही थीं, लेकिन मेरे जिस्म की भूख बढ़ती जा रही थी। मैं तड़प रही थी। अचानक मेरा गुस्सा फूट पड़ा। मैंने रमेश को धक्का दिया और चिल्लाई, “बस करो! इसके लिए मैंने व्रत रखा था? तुम हर बार मुझे तड़पाकर सो जाते हो!” वो बेड से नीचे गिर गए। मैंने गुस्से में कहा, “शादी क्यों की, जब तुम मुझे चोद नहीं सकते? मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी! मैं सबको बता दूँगी कि तुम नामर्द हो। मेरे मायके वाले मुझे कल ही ले जाएँगे!”
रमेश डर गए। उन्हें अपनी गलती का एहसास था। वो माफी माँगने लगे। “गीता, मैं घर का इकलौता बेटा हूँ। मेरे पास धन-दौलत है, उसे भोग। अगर तुम चाहो, तो किसी और से अपनी प्यास बुझा सकती हो। मुझे कोई ऐतराज नहीं।” मैंने कहा, “बाहर जाकर संबंध बनाऊँ, तो लोग क्या कहेंगे? बदनामी होगी। घर के बाहर ये करना ठीक नहीं।” फिर हमने सोचा कि घर में ही कोई रास्ता निकालें। मेरी ननद, कनिका, के पति संजय उस वक्त घर पर थे, क्योंकि कनिका 5 दिन के लिए विदेश गई थी। वो विदेश मंत्रालय में बड़ी ऑफिसर है।
मैंने रमेश से कहा, “संजय मेरे साथ मजाक करते हैं। मुझे लगता है वो मुझे चाहते हैं। अगर मैं उनके साथ सो जाऊँ, तो क्या तुम्हें बुरा लगेगा?” रमेश ने हँसते हुए कहा, “बिल्कुल नहीं। जाओ। हो सके, तो एक बेटा भी पैदा कर लो, जो मेरी दौलत का वारफाज बने।” मैंने रमेश को गले लगाया, माफी माँगी। फिर मैंने जल्दी से एक पतली सी मैक्सी पहनी और संजय के कमरे की ओर बढ़ गई। मेरे अंदर ब्रा-पैंटी कुछ नहीं था, सिर्फ वो मैक्सी, जो मेरे जिस्म से चिपक रही थी।
जब मैं संजय के कमरे में पहुँची, वो मोबाइल पर ब्लू फिन्म देख रहे थे। उनका 9 इंच का मोटा, कड़क लंड बाहर था, और वो मुठ मार रहे थे। मैंने दरवाजा खटखटाया, लेकिन वो इतने मस्त थे कि सुन ही नहीं पाए। मैंने हँसते हुए कहा, “क्या बात है, इतना मस्त माल सामने खड़ा है, और तुम मुठ मार रहे हो?” संजय चौंक पड़े। उन्होंने जल्दी से लंड को ढकने की कोशिश की और बोले, “अरे, गीता! तुम? साले साहब कहाँ हैं?” मैंने झूठ बोला, “वो सो गए। आज ज्यादा पी लिए थे।”
संजय ने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा। मेरी मैक्सी मेरे जिस्म से चिपकी थी, और मेरे निप्पल्स साफ दिख रहे थे। मेरे दिल की धड़कनें तेज थीं। मैंने थोड़ा हिलसटाते हुए कहा, “आज रात… मैं तुम्हारी हूँ।” और मैंने उनके होंठों पर एक गहरा, गीला किस दे दिया। संजय ने मेरी कमर पकड़कर मुझे बिस्तर पर लिटाया। उनकी उंगलियाँ मेरी मैक्सी के नीचे गईं, और एक झटके में उन्होंने उसे उतार फें। मैं पूरी नंगी थी। मेरे बूब्स आजाद होकर उछलने लगे। वो मेरे निप्पल्स को दाँतों से काटने लगे। “आह्ह… संजय… धीरे… उफ्फ…” मेरी सिसकियाँ निकलने लगीं। मैं थोड़ा डर भी रही थी, पर मेरी चूत पहले से गीली थी।
संजय ने मेरी चूत को चाटना शुरू किया। उनकी जीभ मेरे क्लिट को चूम रही थी। “आआय… संजय… और चाटो…!” मैं उनके बाल पकड़कर उनकी जीभ को और गहरे दबा रही थी। मेरी चूत से रस टपक रहा था। मैंने तड़पकर कहा, “बस करो, अब लंड डाल दो! मेरी आग बुझा दो!” मैंने उनका लंड पकड़ा। 9 इंच का मोटा लौड़ा मेरे हाथ में फड़फड़ा रहा था। मैंने उसे चूसना शुरू किया। “मम्म… कितना टेस्टी… उम्फ…” लंड मेरे मुँह में पूरा नहीं जा रहा था। संजय बोले, “चूस, गीता… मेरा लौड़ा तेरा है…!”
उन्हेंने पूछा, “गीता, तुम्हारा और सा ठीक है ना?” मैंने सच बता दिया, “नहीं। रमेश नामर्द हैं। उन्होंने ही मुझे तेरे पास भेजा।” संजय ने मेरे होंठ चूमे और कहा, “आज से तारी चूत की प्यास मैं बुझाऊँगा। ले, ये लंड!” उन्होंने मेरा मुँह पकड़ा और लंड मेरे गले तक ठूँस दिया। फिर मेरी चूत पर लंड सेट किया और एक ज़ोरदार धक्का मारा। “आआआय… मर गई…!” मैं चीख पड़ी। दर्द से मेरी आँखों में आँसू आ गए। “संजय… धीरे… ये मेरी पहली चुदाई है…!” लेकिन कुछ देर बाद दर्द मजे में बदल गया।
संजय ने धक्के तेज किए। “पच्छ… पछ…!” लंड मेरी चूत की गहराइयों में जा रहा था। मेरे बूब्स हर धक्के के साथ उछल रहे थे। “आह्ह… चोद… और जोर से…!” मैं चिल्ला रही थी। संजय बोले, “ले, रानी… तेरा चूत फाड़ डालूँगा!” मैंने नीचे से कूल्हे उछालकर धक्के दिए। “हाँ… फाड़ दे… मेरी चूत तेरी है… उह्ह…!” हम दोनों पसीने से तर थे। कमरे में चुदाई की आवाजें गूँज रही थीं।
फिर हम 69 में आ गए। संजय मेरी चूत चाट रहे थे, और मैं उनका लंड चूस रही थी। उनकी जीभ मेरे क्लिट को चूम रही थी। “मम्म… संजय… कितना मजा…” मैं मचल रही थी। फिर मैं उनके ऊपर चढ़ गई। मैंने उनका लंड अपनी चूत में डाला और ऊपर-नीचे होने लगी। “आआह्ह… कितना गहरा… उफ!” लंड मेरी बच्चेदानी से टकरा रहा था। संजय मेरे बूब्स दबा रहे थे। “ले, गीता… चोद मुझे… और जोर से…!”
अचानक दरवाजा खटखटाया। मैंने दौड़कर मैक्सी पहनी और दरवाजा खोला। रमेश थे। वो अंदर आए और हँसते हुए बोले, “मेहमान जी, आप चुदाई करो। बूब्स दबाना, किस करना, मैं कर लूँगा।” कमरे में हँसी छा गई। फिर जो हुआ, वो अनोखा था। संजय मेरी चूत में धक्के मार रहे थे, और रमेश मेरे बूब्स चूस रहे थे। “आह्ह… संजय… चोद… रमेश… और चूसो…!” मैं चिल्ला रही थी। संजय बोले, “ले, रानी… तेरा चूत तो जन्नत है…!” रमेश मेरी गाँड में उंगली डालने लगे। “उह्ह… दोनों मिलकर… मार डालो…!”
संजय ने मुझे घोड़ी बनाया और पीछे से लंड डाला। “प… डप…!” उनकी जाँघें मेरी गाँड से टकरा रही थीं। “आआह्ह… और जोर से… फा डाल…!” मैं चीख रही थी। रमेश मेरे सामने थे और मेरा मुँह चूम रहे थे। फिर संजय ने मेरी गाँड में लंड लगाया। मैं डर गई। “नहीं… वहाँ नहीं…!” लेकिन उन्होंने धीरे से डाला। “आआय… मर गई…!” दर्द के बाद मजा आने लगा। “हाँ… चोद… मेरी गाँड… उह्ह…!”
रात भर चुदाई चली। संजय ने मेरी चूत और गाँड को बारी-बारी चोदा। रमेश मेरे बूब्स और गाँड से खेलते रहे। “आह्ह… उह्ह… और…!” मेरी सिसकियाँ कमरे में गूँज रही थीं। सुबा ह मैं चल नहीं पा रही थी। मेरी चूत में सूजन आ गई थी, और मैं पैर फैलाकर चल रही थी।। संजय ने हँसते हुए कहा, “क्या माल है तू, गीता!” रमेश ने गले लगाया और बोला, “अब तू खुश तो है ना?”
ये थी मेरी करवा चौथ की चुदाई की कहानी। दोस्तों, क्या आपने कभी ऐसा अनुभव किया? अपनी राय कमेंट्स में जरूर बताएं!