मेरा नाम विजय है। उम्र 24 साल, हाइट 5 फीट 8 इंच, रंग गोरा, और शरीर अच्छा-खासा फिट। मैं रायपुर में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर रहा हूँ, और ये मेरा आखिरी साल है। मेरी पुरानी गर्लफ्रेंड, दीक्षा, जिसकी उम्र अब 23 साल है, 5 फीट की हाइट, गेहुंआ रंग, और एकदम भरा-भरा बदन, जो किसी को भी दीवाना बना दे। उसकी आँखें बड़ी-बड़ी, और होंठ इतने रसीले कि बस देखते ही मन डोल जाए। उसकी शादी हो चुकी है, और वो अब भोपाल में अपने पति के साथ रहती है। उसका पति एक प्राइवेट कंपनी में जनरल शिफ्ट में काम करता है। ये कहानी मेरी और दीक्षा की है, जो मेरे स्कूल टाइम से शुरू हुई और आज भी अधूरी सी जलती रहती है।
ये बात तब की है जब मैं 11वीं में था, 18 साल का, और क्लास का कैप्टन। दीक्षा मेरी क्लास में थी। वो एकदम सीधी-सादी, मासूम सी लड़की थी, लेकिन उसकी खूबसूरती कमाल की थी। उसका चेहरा ऐसा कि बस देखते ही दिल में कुछ-कुछ होने लगे। क्लास में जब भी फ्री पीरियड होता, मैडम हमें शांत रहने को कहकर चली जातीं, क्योंकि बगल की क्लास में पढ़ाई चल रही होती। मेरी जिम्मेदारी थी कि सबको चुप करवाऊँ। जो हल्ला करता, उसका नाम मैं पेपर पर लिखकर मैडम को दे देता। मैडम फिर उन बच्चों की पिटाई करतीं। सबसे आगे वाली बेंच पर बैठने वाली तीन लड़कियाँ, जिनमें दीक्षा भी थी, हमेशा हल्ला करतीं, और उनका नाम मेरे पेपर पर हर बार होता।
एक दिन दीक्षा ने मुझसे कहा, “विजय, मुझे तुमसे अकेले में कुछ जरूरी बात करनी है।” मैं हैरान रह गया। मैंने सोचा, शायद वो मेरे रोज़ नाम लिखने की वजह से कुछ कहना चाहती है। अगले दिन उसने कहा कि अकेले में बात करना मुमकिन नहीं, और उसने मुझे एक कॉपी देते हुए कहा, “मैंने जो तुमसे कहना है, वो इस कॉपी के बीच वाले पेज पर लिखा है। इसे जरूर पढ़ना।” मैंने कॉपी ले ली और घर जाकर उसे खोला। जैसे ही मैंने पढ़ा, मेरे होश उड़ गए। उसमें लिखा था, “विजय, मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ। तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो। तुम्हारी हर बात, हर अदा मुझे पसंद है।” ऐसी और भी ढेर सारी बातें थीं, जो पढ़कर मुझे यकीन ही नहीं हुआ।
अगले दिन क्लास में उसने मुझसे इतनी प्यारी-प्यारी बातें कीं कि मैं उसे देखता ही रह गया। धीरे-धीरे हमारी बातें बढ़ीं, और कुछ ही दिनों में हम प्यार में पड़ गए। हम घंटों बातें करते, फोन पर, क्लास में, जहाँ मौका मिले। वो मुझसे पूरी तरह खुल गई थी। कोई बात नहीं छुपाती थी। हम दोनों एक-दूसरे के बेस्ट फ्रेंड बन गए। फिर एक दिन मैंने उसे अपने दोस्त के घर बुलाया। उसका दोस्त और उसके मम्मी-पापा गाँव गए थे, घर खाली था। दीक्षा ठीक टाइम पर आ गई।
मैंने उसे अंदर बुलाया, सोफे पर बैठाया। वो मेरे पास बैठी, और हम इधर-उधर की बातें करने लगे। मौका देखकर मैंने उसका हाथ पकड़ा, धीरे-धीरे सहलाने लगा। लेकिन तभी वो जोर-जोर से रोने लगी। मैं घबरा गया, सोचा मैंने क्या गलत कर दिया? उसने कुछ देर बाद शांत होकर पूछा, “विजय, क्या तुम भी मुझे उतना ही चाहते हो जितना मैं तुम्हें? क्या तुम मुझसे शादी करोगे?” मैंने तुरंत हाँ बोल दिया। उस दिन बस हम गले मिले, और वो चली गई। मैं उसके ख्यालों में डूब गया।
हम कई बार अकेले मिले। मैंने उसे चूमा, लेकिन उसने मुझे आगे कुछ करने नहीं दिया। हमारा प्यार कुछ समय तक बहुत अच्छा चला, लेकिन फिर मेरे बड़े भैया को पता चल गया। उन्होंने मुझे बहुत समझाया, और धीरे-धीरे हमारा ब्रेकअप हो गया। फिर भी हम अच्छे दोस्त रहे। क्लास में बातें करते, लेकिन बाहर मिलना बंद हो गया। कॉलेज में आने के बाद हमारी फोन पर कभी-कभार बात होती। फिर उसकी शादी हो गई, और वो भोपाल चली गई। मैं अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई में बिजी हो गया।
ये घटना दो महीने पहले की है। मैंने एक दिन उसे यूं ही कॉल किया। उसने कहा, “विजय, भोपाल आ जाओ, मुझसे मिलने।” मैंने हाँ बोल दिया और अगले दिन उसके घर चला गया। वो किराए के मकान में रहती थी। उसका पति ड्यूटी पर था, वो अकेली थी। मैंने घंटी बजाई, उसने दरवाजा खोला। उसने हल्के गुलाबी रंग का सूट पहना था, जिसमें वो कमाल लग रही थी। उसने मुझे अंदर बुलाया, पानी दिया, फिर किचन में जाकर मेरे लिए नाश्ता बनाया। नाश्ता करते हुए हमने पुरानी बातें शुरू कीं। हंसी-मजाक के बीच मैंने पूछ लिया, “दीक्षा, क्या तुम अब भी मुझसे प्यार करती हो?”
वो थोड़ा रुकी, फिर बोली, “हाँ विजय, तुम मेरी जिंदगी का पहला प्यार हो। मैं तुम्हें कैसे भूल सकती हूँ?” मैंने कहा, “दीक्षा, अब तुम्हारी शादी हो चुकी है। ये सब भूल जाओ।” बात करते-करते मैंने उसका हाथ पकड़ लिया। वो मेरे और करीब आ गई। मैंने उसे अपनी बाहों में लिया, और उसने मुझे इतने जोर से पकड़ा कि मेरे बदन में करंट सा दौड़ गया। उसने अपने होंठ मेरे होंठों की तरफ बढ़ाए, और हम दोनों एक-दूसरे को चूमने लगे।
हम करीब दस मिनट तक एक-दूसरे के होंठ चूसते रहे। उसकी जीभ मेरे मुँह में थी, और मेरी जीभ उसके मुँह में। उसका गर्म साँस मेरे चेहरे पर पड़ रहा था। मेरा 7 इंच का लंड अब पूरी तरह तन चुका था, और उसकी चूत के बारे में सोचकर पागल हो रहा था। मैंने धीरे से उसके बूब्स पर हाथ रखा, जो अब पहले से कहीं ज्यादा बड़े और मुलायम थे। शायद उसका पति उसे अच्छे से चोदता था। मैंने उसके बूब्स को सूट के ऊपर से दबाना शुरू किया। वो कुछ नहीं बोली, बस मेरे होंठ चूसती रही। उसकी साँसें तेज हो रही थीं।
मैंने मौका देखकर उसका सूट ऊपर उठाया, लेकिन वो बोली, “विजय, ये गलत है। मैं शादीशुदा हूँ।” उसकी आवाज में हिचक थी, लेकिन उसकी आँखों में वासना साफ दिख रही थी। मैंने कहा, “दीक्षा, बस एक बार, सिर्फ हम दोनों की बात है।” वो थोड़ा हिचकिचाई, फिर बोली, “ठीक है, लेकिन पहले दरवाजा बंद कर देती हूँ।” वो उठी, दरवाजा लॉक किया, और वापस आकर मेरे ऊपर लेट गई।
मैंने उसका सूट उतारा। अब वो सिर्फ काली ब्रा और सलवार में थी। उसकी गोरी चिकनी कमर देखकर मेरा लंड और जोर से तन गया। मैंने उसकी ब्रा के हुक खोले, और उसके 34D साइज के बूब्स मेरे सामने थे। गुलाबी निप्पल, एकदम टाइट। मैंने एक बूब्स को मुँह में लिया और जोर-जोर से चूसने लगा। “आह्ह्ह… विजय… उफ्फ्फ…” वो सिसकियाँ ले रही थी। मैं दूसरे बूब्स को दबा रहा था, और उसकी सिसकियाँ और तेज हो गईं। “विजय… आह्ह्ह… धीरे… उह्ह्ह…” उसकी आवाज में मस्ती थी।
मैंने उसकी सलवार का नाड़ा खोला और उसे नीचे सरका दिया। अब वो सिर्फ काली पेंटी में थी। मैंने उसकी पेंटी के ऊपर से उसकी चूत को छुआ, और वो पूरी तरह गीली थी। उसका चूत रस पेंटी को भिगो चुका था। मैंने पेंटी के अंदर हाथ डाला, और उसकी चिकनी, गीली चूत को सहलाने लगा। “आह्ह्ह… विजय… ये क्या कर रहे हो… उह्ह्ह…” वो जोर-जोर से सिसक रही थी। मैंने उसकी पेंटी उतार दी, और उसकी चूत मेरे सामने थी। गुलाबी, चिकनी, और पूरी तरह गीली।
मैंने अपनी जीभ उसकी चूत पर रखी। “आह्ह्ह… विजय… ये गंदी जगह है… मत करो… उह्ह्ह…” वो चीख रही थी, लेकिन मैंने उसकी एक न सुनी। मैंने उसकी चूत की पंखुड़ियों को उंगलियों से खोला और जीभ अंदर डाल दी। “आह्ह्ह… उफ्फ्फ… विजय… ये क्या… आह्ह्ह…” उसकी सिसकियाँ पूरे कमरे में गूंज रही थीं। मैं उसकी चूत को चाट रहा था, उसका रस मेरे मुँह में आ रहा था। वो मेरे सिर को अपनी जांघों के बीच दबा रही थी। “हाँ… और चाटो… आह्ह्ह… खा जाओ मेरी चूत को… उह्ह्ह…” वो पागल हो रही थी।
उसने कहा, “विजय, मेरे पति ने कभी मेरी चूत नहीं चाटी। तुम… आह्ह्ह… इतना अच्छा… उह्ह्ह… कर रहे हो…” मैंने और जोर से उसकी चूत चूसी, मेरी जीभ उसकी चूत के अंदर तक जा रही थी। वो जोर-जोर से चिल्ला रही थी, “आह्ह्ह… विजय… हाँ… और… उह्ह्ह… खा जाओ… आह्ह्ह…” करीब 15 मिनट तक मैंने उसकी चूत चाटी, और वो दो बार झड़ चुकी थी। उसका चूत रस मेरे मुँह पर फैल गया था।
फिर मैंने कहा, “दीक्षा, अब मेरा लंड चूसो।” वो हिचकिचाई, बोली, “नहीं विजय, मैंने कभी ऐसा नहीं किया।” मैंने उसे समझाया, “बस एक बार ट्राई करो, तुम्हें मजा आएगा।” वो मान गई। उसने मेरी जींस उतारी, मेरा 7 इंच का लंड बाहर आया, जो अब पूरी तरह कड़क था। उसने धीरे से मेरे लंड को मुँह में लिया। “उह्ह्ह… दीक्षा… हाँ… ऐसे ही…” मैं सिसक रहा था। उसकी गर्म जीभ मेरे लंड पर फिसल रही थी। वो धीरे-धीरे चूस रही थी, और मुझे जन्नत का मजा आ रहा था।
करीब 10 मिनट तक वो मेरा लंड चूसती रही। फिर बोली, “विजय, अब और नहीं सहा जाता। प्लीज, अपना लंड डाल दो। मैं सालों से इस चुदाई के लिए तड़प रही हूँ।” मैंने उसकी चूत पर लंड रगड़ा। उसकी चूत इतनी गीली थी कि रस बाहर तक बह रहा था। मैंने धीरे से लंड का टोपा अंदर डाला। “आह्ह्ह… विजय… धीरे… उफ्फ्फ…” वो चीखी। उसने कहा, “तुम्हारा लंड मेरे पति से बहुत बड़ा और मोटा है।” मैंने कहा, “चिंता मत करो, मैं धीरे करूँगा।”
मैंने धीरे-धीरे लंड अंदर डाला। उसकी चूत टाइट थी, और मेरा लंड पूरा अंदर जाने में थोड़ा दर्द दे रहा था। “आह्ह्ह… उफ्फ्फ… विजय… धीरे…” वो सिसक रही थी। मैंने एक जोरदार धक्का मारा, और मेरा पूरा लंड उसकी चूत में समा गया। “आह्ह्ह… उह्ह्ह…” उसने मुझे कसकर पकड़ लिया, उसके नाखून मेरी पीठ में गड़ गए। मैं रुका, उसके बूब्स सहलाने लगा। जब वो थोड़ा नॉर्मल हुई, मैंने धीरे-धीरे धक्के शुरू किए।
“आह्ह्ह… हाँ… विजय… चोदो मुझे… उह्ह्ह…” वो चिल्ला रही थी। मैं धीरे-धीरे धक्के मार रहा था, और वो अपनी कमर उठाकर मेरा साथ दे रही थी। “हाँ… और जोर से… आह्ह्ह… चोदो… मेरी चूत फाड़ दो… उह्ह्ह…” उसकी गंदी बातें मुझे और जोश दिला रही थीं। मैंने स्पीड बढ़ाई, और अब कमरे में सिर्फ “थप-थप-थप” की आवाज और उसकी सिसकियाँ गूंज रही थीं। “आह्ह्ह… उह्ह्ह… हाँ… विजय… और जोर से… उफ्फ्फ…” वो पागल हो रही थी।
करीब 25 मिनट की चुदाई के बाद मैंने अपना वीर्य उसकी चूत में डाल दिया। वो भी दो बार झड़ चुकी थी। हम दोनों पसीने से तर-बतर थे। मैं उसके ऊपर लेट गया, और हम एक-दूसरे को चूमने लगे। उसने कहा, “विजय, मेरे पति ने मुझे कभी इतना मजा नहीं दिया। तुमने मेरी चूत को ठंडा कर दिया।” उस दिन हमने तीन बार चुदाई की। हर बार उतना ही जोश, उतनी ही मस्ती।
अब जब भी उसका मन करता है, वो मुझे फोन करती है। मैं उसके घर जाता हूँ, और उसकी प्यासी चूत को जमकर चोदता हूँ। वो मेरी चुदाई से हमेशा खुश रहती है। दोस्तों, आपको मेरी और दीक्षा की ये चुदाई की कहानी कैसी लगी? कमेंट में जरूर बताइए।