मेरी ये कहानी उन रिश्तों की है, जो दुनिया की नजरों में पवित्र माने जाते हैं, लेकिन जिंदगी के कुछ पल ऐसे आते हैं जब वासना और इच्छाएँ हर सीमा को तोड़ देती हैं। ये मेरी और मेरी सास कविता की कहानी है—एक ऐसी कहानी, जो दुख, करुणा, और फिर शारीरिक भूख की आग में जलकर राख हो गई।
मेरी शादी स्वाति से चार साल पहले हुई थी। स्वाति उनकी माँ कविता की इकलौती बेटी थी। हम दोनों गुरुग्राम में रहते थे, एक अच्छी-खासी जिंदगी जी रहे थे। मैं घर से काम करता था, और स्वाति अपनी कंपनी में दिन-रात मेहनत करती थी। हमारा रिश्ता मजबूत था, लेकिन ससुर जी के देहांत ने सब कुछ बदल दिया। ससुर जी को लिवर की बीमारी थी। कई महीनों तक अस्पताल के चक्कर काटने के बाद, वो सिर्फ 45 साल की उम्र में चल बसे। कविता उस वक्त 40 की थीं, लेकिन उनकी खूबसूरती में कोई कमी नहीं थी। उनका भरा हुआ जिस्म, गोरा रंग, और वो गहरी आँखें—हर कोई उनकी तारीफ करता था।
ससुर जी के जाने के बाद कविता अकेली पड़ गई थीं। उनका घर कानपुर में था, और स्वाति की जिम्मेदारियों की वजह से वो वहाँ ज्यादा जा नहीं पाती थी। मैंने ठान लिया कि मुझे कविता का ख्याल रखना है। मेरा वर्क-फ्रॉम-होम जॉब मुझे ये मौका देता था कि मैं बार-बार कानपुर जा सकूँ। शुरू-शुरू में मैं हर महीने एक-दो बार जाता था। कविता को देखकर लगता था कि वो अपने दुख में डूबी हैं। वो कम बोलती थीं, बस घर के कामों में लगी रहती थीं। मैं कोशिश करता कि उनका मन बहलाऊँ—कभी उनके लिए उनकी पसंद का खाना लाता, कभी पुरानी बातें छेड़ता। धीरे-धीरे वो मुझसे खुलने लगीं।
एक दिन, ससुर जी के देहांत को तीन महीने बीत चुके थे। मैं कानपुर पहुँचा तो कविता थोड़ा बदली-बदली सी लगीं। उन्होंने हल्का मेकअप किया था, और उनके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान थी। “अमित, तुम हर बार इतनी दूर से आते हो… मेरे लिए इतना कर रहे हो,” उन्होंने कहा। उनकी आवाज में एक गर्माहट थी, जो पहले नहीं थी। मैंने हँसकर कहा, “अरे, आप तो मेरी माँ जैसी हैं। आपका ख्याल रखना मेरा फर्ज है।” लेकिन मेरे मन में कुछ और ही चल रहा था। उनकी साड़ी उनके जिस्म से चिपकी थी, और उनकी नाभी साफ दिख रही थी। मैंने नजरें हटाने की कोशिश की, लेकिन बार-बार मेरी आँखें वहीं चली जाती थीं।
उस रात मैंने कविता को बाहर खाना खाने के लिए मनाया। “चलो, सासू माँ, आज कुछ अच्छा खाते हैं।” वो पहले मना करती रहीं, बोलीं, “नहीं, घर पर ही खा लेंगे।” लेकिन मेरे जिद करने पर वो मान गईं। जब वो तैयार होकर आईं, तो मैं देखता रह गया। उन्होंने एक लाल रंग की पतली साड़ी पहनी थी, और उनका ब्लाउज इतना टाइट था कि उनके बूब्स उभरकर सामने आ रहे थे। उनकी नाभी इतनी गहरी और सेक्सी थी कि मेरा मन डोल गया। “क्या देख रहे हो, अमित?” उन्होंने हँसते हुए पूछा। मैं घबरा गया और बोला, “कुछ नहीं… आप बहुत अच्छी लग रही हैं।” वो मुस्कुराईं और बोलीं, “चलो, देर हो रही है।”
रेस्टोरेंट में हमने खाना खाया। कविता मेरे साथ बहुत खुलकर बात कर रही थीं। वो हँस रही थीं, मेरे साथ मजाक कर रही थीं। बार-बार उनका हाथ मेरे हाथ को छू रहा था। जब हम खाना खाकर निकले, तो वो मेरे बाजू में बाजू डालकर चलने लगीं। उनके बूब्स मेरे बाजू से बार-बार दब रहे थे। “पच…” मेरे दिल की धड़कनें तेज हो गई थीं। मुझे लग रहा था कि वो जानबूझकर ऐसा कर रही हैं, लेकिन उनकी आँखों में कोई शरारत नहीं थी—बस एक अजीब सी गर्माहट थी।
घर पहुँचकर कविता ने कपड़े बदले। जब वो नाइटी में आईं, तो मेरा दिल और तेज धड़कने लगा। उनकी नाइटी इतनी पतली थी कि उनके बूब्स और गांड की शेप साफ दिख रही थी। उन्होंने ब्रा नहीं पहनी थी, और उनके निप्पल्स नाइटी के पार दिख रहे थे। सबसे हैरानी की बात थी कि उन्होंने लिपस्टिक लगाई थी। “सासू माँ, आप तो आज कुछ ज्यादा ही तैयार हो गईं,” मैंने मजाक में कहा। वो हँसीं और बोलीं, “क्यों, मुझे अच्छा नहीं लगना चाहिए?” उनकी आवाज में एक शरारत थी।
मेरी साँसें तेज हो रही थीं। मेरे मन में गलत ख्याल आने लगे थे। मैं जानता था कि ये गलत है, लेकिन कविता की खूबसूरती और उनकी हरकतें मुझे पागल कर रही थीं। आखिरकार मैंने हिम्मत जुटाई और बोला, “सासू माँ, आज आप मेरे कमरे में सो जाइए। अकेले अच्छा नहीं लगता।” मेरी आवाज काँप रही थी। वो मेरी ओर देखने लगीं। एक पल के लिए लगा कि वो नाराज हो जाएँगी, लेकिन फिर वो मुस्कुराईं और बोलीं, “ठीक
मेरे लिए ये हरी झंडी थी। मैंने तुरंत उन्हें अपनी बाहों में भर लिया। “आह्ह…” उनकी हल्की सी सिसकारी निकली। हम दोनों एक-दूसरे के जिस्म को टटोलने लगे। मेरे होंठ उनके होंठों तक पहुँच गए। “उम्म…” वो सिसकारी ले रही थीं। हम दोनों बिस्तर पर गिर पड़े। मैंने उनकी नाइटी उतारी, और वो मेरी शर्ट खींचने लगीं। उनका नंगा जिस्म देखकर मेरे तन-बदन में आग लग गई। उनके गोल-गोल बूब्स, चिकनी गांड, और कसी हुई कमर—वो किसी जवान लड़की से कम नहीं थीं।
मैंने उनके बूब्स अपने मुँह में लिए और उनके निप्पल्स को चूसने लगा। “आह्ह… अमित… और चूसो…” वो सिसकारियाँ ले रही थीं। मैं उनके बूब्स को मसल रहा था, और वो मेरे लंड को पैंट के ऊपर से सहला रही थीं। “बेटा, तेरा लंड तो बहुत मोटा है…” उन्होंने शरारती अंदाज में कहा। मैंने अपना लंड बाहर निकाला और उनके मुँह के पास किया। वो उसे ऐसे चूसने लगीं जैसे कोई भूखा शेर अपने शिकार को खाता हो। “ओह्ह… सासू माँ… कितना अच्छा लग रहा है…” मैं सिसकारी ले रहा था। उनका चूसना इतना जबरदस्त था कि मेरा लंड और सख्त हो गया।
फिर मैंने उनकी चूत पर हाथ लगाया। उनकी चूत गर्म थी और गीली हो चुकी थी। “कविता, तुम्हारी चूत तो पूरी तरह तैयार है…” मैंने कहा। वो बोलीं, “अमित, मेरी चूत चाट दो… प्लीज…” मैं उनकी चूत के पास गया, उनके पैर फैलाए, और अपनी जीभ से उनकी चूत चाटने लगा। “आह्ह… ओह्ह… हाय… और चाटो…” वो सिसकारियाँ ले रही थीं। उनकी चूत से निकलने वाला गर्म पानी मैं पी रहा था। करीब 15 मिनट तक मैं उनकी चूत चाटता रहा। वो इतनी गर्म हो गई थीं कि पागल होने लगी थीं। “बस… अब बर्दाश्त नहीं होता… जल्दी से मेरी चूत की आग बुझा दे…” वो चिल्लाईं।
मैंने उनके पैर अपने कंधों पर रखे और अपने लंड को उनकी चूत पर सेट किया। “कविता, तैयार हो?” मैंने पूछा। “हाँ… डाल दे… मेरी चूत को फाड़ दे…” वो बोलीं। मैंने एक जोरदार धक्का मारा, और मेरा पूरा लंड उनकी चूत में समा गया। “आह्ह… हाय… कितना बड़ा है तेरा लंड…” वो चीखीं। “पच… पच…” चुदाई की आवाजें कमरे में गूंजने लगीं। मैं ऊपर से धक्के दे रहा था, और वो नीचे से अपनी गांड उछाल रही थीं। “चोद मुझे… और जोर से… मेरी चूत फाड़ दे…” वो चिल्ला रही थीं।
फिर मैं नीचे लेट गया, और वो मेरे ऊपर चढ़ गईं। उन्होंने मेरा लंड पकड़ा, अपनी चूत पर सेट किया, और धीरे-धीरे उस पर बैठ गईं। “उम्म… कितना गहरा गया…” वो बोलीं। फिर वो उछल-उछलकर चुदवाने लगीं। “पच… पच…” की आवाजें और तेज हो गईं। “आह्ह… अमित… तू तो मेरा मर्द है…” वो सिसकारी ले रही थीं। हमने कई पोजीशन आजमाए—कभी मैंने उन्हें घोड़ी बनाया, कभी पीछे से उनकी गांड पर धक्के मारे। “चोदो… मेरी गांड भी मारो…” वो चिल्लाईं। मैंने उनकी गांड में उंगली डाली, और वो और पागल हो गईं।
उस रात हमने चार बार चुदाई की। हर बार वो और मैं एक-दूसरे को खुश करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे। सुबह जब मैं उठा, तो कविता मेरे सीने पर सिर रखकर सो रही थीं। “अमित, ये रात मेरी जिंदगी की सबसे खूबसूरत रात थी…” उन्होंने कहा। मैंने उन्हें चूमा और बोला, “कविता, ये तो बस हमारी शुरुआत है।”
अब मैं हर हफ्ते कानपुर जाता हूँ। स्वाति को लगता है कि मैं उसकी माँ का ख्याल रखने जाता हूँ। लेकिन सच्चाई ये है कि कविता अब मेरी दूसरी बीवी बन गई हैं। हम दोनों का रिश्ता अब सिर्फ सास-दामाद का नहीं रहा। हर बार जब मैं कानपुर जाता हूँ, हम दो दिन जमकर चुदाई करते हैं। “आह्ह… अमित… तू तो मेरा असली मर्द है…” वो हर बार कहती हैं। कभी-कभी हम हनीमून मनाने भी चले जाते हैं। स्वाति को लगता है कि मैं उनकी माँ को घुमाने ले जा रहा हूँ, लेकिन सच्चाई कुछ और है।